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लल द्यद : अतिरेक के परे एक परिचय

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लल द्यद कश्मीरी इतिहास में एक बेहद महत्त्वपूर्ण शैव योगिनी हैं. उन्हें जाने बिना कश्मीर में इस्लाम के आगमन की कोई सम्यक समझ नहीं बन सकती. यहाँ फ़िलहाल अपनी किताब कश्मीरनामा का एक हिस्सा प्रस्तुत कर रहा हूँ. कोशिश होगी जल्द ही विस्तार से उन पर अलग से लिखूँ. -------------------------------------------- इसी दौर कश्मीर के इतिहास में एक और बेहद महत्त्वपूर्ण शख्सियत का पदार्पण हुआ – लल द्यद. हमदानी की समकालीन लल द्यद के जीवन और काम को समझे बिना उस काल को समझना संभव नहीं है. एक तरफ़ यह उस समय की सामाजिक स्थिति को जानने में सहायक होगा, दूसरी तरफ़ उस पृष्ठभूमि को भी समझने में मदद मिलेगी जिसमें कश्मीर में ऋषि सम्प्रदाय फूला-फला और एक ऐसे इस्लाम ने आकार लिया जिसके बारे में अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में डी एच लॉरेंस ने लिखा कि “कश्मीर मुसलमान हृदय से हिन्दू हैं.” [i] जयालाल कौल ने साहित्य अकादमी से प्रकाशित मोनोग्राफ़   में लल द्यद के जन्म सम्बन्धी विभिन्न मान्यताओं का अध्ययन कर 1317 से 1320 के बीच माना है. प्रेमनाथ बज़ाज़ इसे 1335 बताते हैं. [ii] उनके जन्मस्थान को लेकर दो मत हैं, पहला पाम्पो