उपासना झा की कविताएँ
उपासना झा ने ढेर सारे उपक्रम किये हैं, होटल मैनेजमेंट से लेकर हिंदी में मास्टरी तक. उनकी कविताएँ अभी एकदम हाल में सामने आई हैं और उम्मीद जगाने वाली हैं. भाषा का एक सौष्ठव है उनके यहाँ जो विषय को गतिमान बनाता है. मैं फिलहाल इसे किसी विमर्श का नाम नहीं दूँगा लेकिन एक मध्यवर्गीय स्त्री के जीवन के विश्वसनीय चित्र उनके यहाँ जिस तरह आते हैं वे भविष्य की और गहन, और मानीखेज़ कविताओं की राह खोलते हैं. असुविधा में उनका स्वागत. उदास औरत (एक) जब तय था कि समझ लिया जाता मोह और प्रेम कोई भावना नहीं होती रात को नींद देर से आने की हज़ार जायज़ वजहें हो सकती हैं ज़रा सा रद्दोबदल होता है बताते हैं साईन्सगो, हार्मोन्स जाने कौन से बढ़ जाते हैं इंसान वही करता है जो उसे नहीं करना चाहिए गोया कुफ़्र हो जब दीवार पर लगे कैलेंडर पर दूध और धोबी का हिसाब भर हो तारीखें उन तारीखों का रुक जाना क्या कहा जायेगा साल के बारह महीने एक सा रहनेवाला मौसम अचानक बदल जायेगा तेज़ बारिश में, जब ऐसी बरसातों में वो पहले भीग कर जल चुकी थी, जब मान लिया जाना चाहिए कि ज्यादा पढ़ना दिमाग पर करता ह