अरुण कमल का संकलन "मैं वो शंख महाशंख" पढ़ते हुए
अस्सी के दशक के बेहद महत्त्वपूर्ण कवि अरुण कमल के इस संकलन पर मैंने परिकथा के लिए लिखा था जो बाद मे राजकमल प्रकाशन के न्यूज़ लेटर मे भी छपा। आज यहाँ उनके जन्मदिन पर शुभकामनाओं के साथ पीछे से ताक रही डूबती आँख के साथ चलते कदम... · अरुण कमल का हालिया संकलन ‘मैं वो शंख महाशंख’ पढ़ते हुए उनके पहले संकलन की शीर्षक कविता ‘अपनी केवल धार’ की याद आना स्वाभाविक है. वंचित कामगार वर्ग के लिए उनका यह विनीत और कृतग्य भाव उनकी पूरी काव्ययात्रा में बार-बार आया है , लेकिन यहाँ इस कविता में ही नहीं बल्कि कई अन्य कविताओं में भी इस कृतज्ञता की जगह एक सहयात्री का भाव है. अपनी तीन दशकों से लम्बी काव्ययात्रा के इस पड़ाव में उनका पहले से कहीं अधिक धैर्यवान और परिपक्व दिखना तो स्वाभाविक है, लेकिन इसके साथ वह जो पहले से अधिक उर्जावान, व्यग्र और धारदार दिख रहे हैं, वह विस्मित करने वाला है. इस संकलन का भावबोध और इसकी वैचारिकता ही नहीं, इसके शिल्प और भाषा की बहुरंगी चमक भी उस ऊर्जा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे रही है, जो उनके कवि को लगातार सक्रिय ही नहीं बनाए हुए है बल्कि लगातार नए-नए क्षे