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बंकर बस्ती - निदा नवाज़ की कविता

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निदा नवाज़ हमारे लिए कश्मीर की आँख भी हैं और ज़बान भी. ख़बरों की भीड़ में कश्मीर का सच उनके यहाँ से मिलता है हमें. उनकी कविताएँ युद्ध भूमि के बीच बैठकर लिखी कविताएँ हैं...पागलपन के दौर में एक रौशनख़याल कवि के क़लम से बनी सच की तस्वीर...असुविधा आभारी है निदा भाई का कि उन्होंने इन कविताओं को आप तक पहुँचाने के लिए हमें चुना  बंकर बस्ती   (1) आँखों में आँखें डाल कर फुंकारता है डर बंकर के चारों तरफ़ बिछी रेज़र-वायर के नुकीले ब्लेड जैसे ढल जाते हैं साँपों के हज़ारों विष दन्तों में बेसाख़्ता तेज़ हो जाती हैं दिल की बेतरतीब-धड़कनें बंकर के अंदर से बन्दूकों के ट्रिगर्स पर उँगलियों का दबाव बढ़ने लगता है भूखी आँखों के चन्द जोड़े एक थरथराते देह पर साधने लगते हैं अचूक-निशाना इस बंकर-बस्ती के नुक्कड़ पर हर दिन मर जाता है कोई अल्हड़ बालक परिंदा एक बेनाम-मौत। (2) शाम होते ही हर तरफ़ फैल जाता है सियाह-सहमा-सन्नाटा लोग ढ़ल जाते हैं लाशों में सूरज डर के मारे सिकुड़ जाता है एक बड़े से रक्त-धब्बे में नीड़ों में सिमट चुके परिंदे मुश्किल से सुन पाते ह

स्वयं प्रकाश का सफ़र - हिमांशु पण्ड्या

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यह लेख वैसे तो  "स्वयं प्रकाश की चुनिन्दा कहानियाँ"न की भूमिका के रूप मे लिखा गया है, लेकिन स्वतंत्र रूप से इसे पढ़ते हुए भी आप स्वयं प्रकाश की कहानियों के विस्तृत परिसर के देखे-अदेखे झरोखों के तमाम पते पा सकते हैं। बहुत कम लिखने वाले आलोचक हिमांशु जब डूब कर लिखते हैं तो वह प्रचलित अर्थों मे समीक्षा नहीं होती बल्कि रचना को आर पार देखने की नज़र देने वाली आलोचना होती है। उनसे यह आग्रह कि इस बहुत कम को कम अज़ कम "कम" मे तब्दील करें।  प्यारे भाई रामसहाय [1] , जीना हराम कर रखा है आपने | स्वयं प्रकाश की ये ग्यारह कहानियां चुनीं आपने, अपने समय की चर्चित-चमकदार-शीर्ष कहानियां, और अब चाहते हैं, मैं इस विकास यात्रा में एक सूत्र तलाशूँ | क्यों भाई ? बिद्यार्थियों हेतु ? आदर्शोन्मुख यथार्थवाद से यथार्थवाद तक प्रेमचन्द का उत्तरोत्तर विकास ! आदर्शोन्मुख प्रेमचंद के उत्तर-ओ-उत्तर यथार्थवादी प्रेमचंद | १८४४ की पांडुलिपियों के मार्क्स या पूंजी के मार्क्स | लुकाच के मार्क्स या लेनिन के मार्क्स | फ़टाफ़ट अब्बी के अब्बी बताइये – युवा मार्क्स या प्रौढ़ मार्क्स? विकास या ह्रास ?

इला जोशी की कविताएँ

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इन दिनों बम्बई में रह रही इला जोशी एकदम युवा पीढ़ी के उन गिने-चुने कवियों में से हैं जिनकी सामाजिक राजनैतिक सक्रियता साहित्यिक सक्रियता से भी ज़्यादा है. वह "मोर्चे पर कवि" के आयोजकों में से हैं जो पिछले एक साल से भी अधिक समय से हर महीने बम्बई की लोकल ट्रेन से लेकर सड़क तक पर जनपक्षधर कविता को लेकर जाने का शानदार काम कर रहा है.  इला की कविताएँ एक प्रश्नाकुल युवा की कविताएँ हैं. यहाँ लगातार सवाल हैं, सवालों से जूझने का माद्दा है, एक पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री होने की विडम्बनाएँ हैं और उम्मीद है. अक्सर छोटी कविताएँ लिखने वाली इला के पास एक बनती हुई भाषा है और अपने कथ्य को सहजता से कह पाने के लिए आवश्यक शिल्प. असुविधा में उनका स्वागत   देशभक्ति का साहित्य देशभक्ति के काल में रचा गया सबसे अश्लील साहित्य और जुटाए गए कामोत्तेजित आंकड़े इसकी विषय सूची पटी पड़ी थी अफ़वाहों के हस्तमैथुन उपजित वीर्य से और अनुलग्नक में थीं तंत्र और प्रशासन के सम्भोग की विवेचना   हमाम में शर्म नंगों के हमाम में दाख़िल हुई पूरे कपड़े पहनी एक औरत और अपने नं