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चेष्टा सक्सेना के छंद

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चेष्टा छंद में लिखती हैं. खरा और तीख़ा. कवि कहलाये जाने की आकांक्षा उनके यहाँ नहीं है और न ही पोलिटिकली करेक्ट होने की. रोज़ ब रोज़ के निजी और सामाजिक जीवन की विसंगतियों को वह ज़रूरी तंज़ के साथ कहती चली जाती हैं और यही उनकी ताक़त है. हिंदी के अलावा बुन्देली में भी वह लिखती हैं और उम्मीद है आप जल्द ही वह भी पढेंगे. (एक) सरकार हमारी है करारी धन्ना सेठों की हितकारी इनकी बात से इतर जो बोले पाकिस्तान की हो तैयारी गाज गिराते हैं ये उसी पर जिसमें भी पायें खुद्दारी तिनका भी ये मुफत न देते बहुत ही पहुँचे हैं व्यापारी हम गर कुछ पूछें इनसे तो कहते क्या औकात तुम्हारी साधू , बाबा और सन्यासी जाप करें ये सब सरकारी हाँ में हाँ तुम जाओ मिलाते चाहो गर बनना अधिकारी   (दो)   जिंदा हैं पर मरे-मरे से सच से वो कुछ डरे-डरे से। रहमत उनको मिलती है जो दर पर दिनभर गिरे-पड़े से। नियम रईसों पर हैं ढीले मजलूमों पर बड़े कड़े से। कैसे समझें दर्द हमारा जो सोने में जड़े-मढे से। इस सत्ता में स्वागत उनका चिकने हों जो बड़े घड़े से। (ती

सेंसरशिप - ईरानी कवि अली-अब्दोलरेज़ा की कविता

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अमीन की पेंटिंग "अ टेल ऑफ़ टू मुस्लिम्स" गूगल से  मेरे अलफ़ाज़ के क़त्ल-ए-आम के दौरान उन्होंने मेरी आख़िरी पंक्ति का सर क़लम कर दिया और लहू    सियाही की मानिंद   पड़ रहा है काग़ज़ पर यहाँ मौत पसरी हुई है काग़ज़ पर और ज़िन्दगी   पत्थरों से बिखेर दी गई है   अधखुली सी खिड़की की तरह एक नई बन्दूक ने निपटा दिया है दुनिया को और मैं  इस गलियारे के दरवाज़े से  आयातित सामानों सा                   इस जीर्ण-शीर्ण कमरे में हूँ प्रवासी की तरह   मैं क़लम की तरह हूँ ज़िन्दगी में माँ जैसे जर्जर काग़ज़ पर खिंची रेखाओं सा बिल्ली के पंजे अब भी मचलते हैं उन बिलों की ओर भागते चूहे को डराने के लिए जिन्हें भर दिया है उन्होंने. स्कूल में पढ़े पाठों की तलाश करते मैं अपनी जिल के लिए अब नहीं रह गया आशिक जैक मैं अपना नया होमवर्क कर रहा हूँ तुम उसे काट देते हो और उस लड़की में जो अचकचायेगी इस कविता के अंत में एक घर बनाते हो घाव की तरह खुले एक दरवाज़े वाला और इस घर से बेदख़ल कमरे की तरह मौत के किनारों के बीच  ख़ुशी ख़ुशी रहती है एक लड़की  जो मुझे अपना बनाना चाहती थी अपनी आवाज़ों