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कुछ ताज़ा कविताएँ

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अशोक कुमार पाण्डेय की चार कविताएँ __________________________________________________________________ प्रशांत साहू का काम गूगल से  जैसा होता है... आँसुओं की खारी झील सी यह कथा स्त्री के प्रेम की है तैरती हैं जिसमें हमारी सारी प्रेम कथाएँ सूखे पत्तों की तरह जैसा होता है वैसा ही था सब एक राजकुमार प्रेम में डूबा हुआ और झील के किनारे सपने देखती हुई एक स्त्री वे मिले तो हिलोरे लेने लगा झील का पानी महलों से चला आता था वह रात बिरात दोनों तारों पर पाँव रखते जाते थे चाँद तक जहाँ एक बूढ़ी औरत खूब दूध वाली चाय के साथ उनकी प्रतीक्षा करती थी वे अपने साथ लिए जाते थे अधूरे लिखे पन्ने मांग लेते थे कलम बूढी औरत से लिखते थे साझा सपने और जैसा होता है वैसा ही हुआ फिर अचानक पावों के नीचे से खींच लिए गए तारे ठंडी होती रही खूब दूध वाली चाय चाँद थोड़ा और अकेला हो गया धरती थोड़ी और सख्त हवा थोड़ी और भारी शापित हुआ राजकुमार दृष्टि छीन ली गयीं उससे छीन ली गईं स्मृतियाँ छीन लिया गया जीवनदायी स्पर्श भी कह दिया गया यह --- न देख सकोगे न करो

तुर्की कविताएँ - मुईसेर येनिया

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तुर्की  की युवा कवि मुइसेर एनिया की इन कविताओं का अनुवाद हिंदी के कवि अनुवादक मणि मोहन ने किया है. दुनिया भर की स्त्रियों की कविताएँ पढ़ते पितृसत्ता के रूह तक को प्रभावित करने वाले ज़ुल्मों के निशानात शाया होते जाते हैं. मुइसेर की कविताएँ उसी कड़ी का एक रौशन हिस्सा हैं. भीतर तक भेदने वाली नज़र और उसे कविता में ढाल देने का हुनर.  असुविधा के लिए ये कविताएँ उपलब्ध कराने के लिए  मणि मोहन भाई का आभार. मुइसेर की कविताओं का जो संकलन वह ला रहे हैं, उसके लिए उन्हें ख़ूब बधाई भी. Muiser Yenia मैं एक अजनबी हूँ ख़ासकर खुद के लिए ------------------------------ --------------------- खुद की कीमत पर , मैं एक अजनबी के साथ रहती हूँ और यदि मैं उछल पडूँ , तो वो गिर पड़ेगा मेरे भीतर से बाहर मैं अपनी गर्दन के नीचे देखती हूँ मेरे बालों की तरह हैं उसके बाल उसके हाथ मेरे हाथों की तरह मेरे हाथों की जड़ें , धरती के भीतर हैं दर्द से कराहती धरती हूँ मैं , खुद में जाने कितनी बार   अपना चकनाचूर ज़ेहन मैंने छोड़ा है पत्थर के नीचे मैं सोती हूँ ताकि वो आराम कर सके मैं जागती हूँ ताकि वो जा सके - नींद से