कुछ ताज़ा कविताएँ
अशोक कुमार पाण्डेय की चार कविताएँ __________________________________________________________________ प्रशांत साहू का काम गूगल से जैसा होता है... आँसुओं की खारी झील सी यह कथा स्त्री के प्रेम की है तैरती हैं जिसमें हमारी सारी प्रेम कथाएँ सूखे पत्तों की तरह जैसा होता है वैसा ही था सब एक राजकुमार प्रेम में डूबा हुआ और झील के किनारे सपने देखती हुई एक स्त्री वे मिले तो हिलोरे लेने लगा झील का पानी महलों से चला आता था वह रात बिरात दोनों तारों पर पाँव रखते जाते थे चाँद तक जहाँ एक बूढ़ी औरत खूब दूध वाली चाय के साथ उनकी प्रतीक्षा करती थी वे अपने साथ लिए जाते थे अधूरे लिखे पन्ने मांग लेते थे कलम बूढी औरत से लिखते थे साझा सपने और जैसा होता है वैसा ही हुआ फिर अचानक पावों के नीचे से खींच लिए गए तारे ठंडी होती रही खूब दूध वाली चाय चाँद थोड़ा और अकेला हो गया धरती थोड़ी और सख्त हवा थोड़ी और भारी शापित हुआ राजकुमार दृष्टि छीन ली गयीं उससे छीन ली गईं स्मृतियाँ छीन लिया गया जीवनदायी स्पर्श भी कह दिया गया यह --- न देख सकोगे न करो