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विश्व नृत्य दिवस पर स्वरांगी साने की कविताएँ

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चित्र इंटरनेट से साभार  पुणे में रहने वालीं स्वरांगी साने कला, संगीत, नृत्य और साहित्य में समान अभिरुचि रखती हैं. आज विश्व नृत्य दिवस पर उनकी इन कविताओं से गुज़रते हुए आप न नृत्य और उसकी भंगिमाओं के बहाने एक नृत्यांगना के जीवन में भी प्रवेश करते हैं. सम जैसी कविता जीवन की जटिलताओं के बीच ठहरने के लिए किसी सम की तलाश की एक अनूठी व्यंजना रचती है.  नृत्य के नायिका भेद के लिहाज़ से आठ खण्डों में बंटी उनकी लम्बी कविता स्त्री जीवन के तमाम रंगों के कभी चमकीले तो कभी फ़ीके अक्सों से बनी है. इस तरह ये हिंदी कविता के स्त्री पक्ष को एक और ज़रूरी रंग देती हैं, ताब देती हैं. मेरे देखे इधर  नृत्य को केंद्र में रख कर लिखीं ये हिंदी की  इकलौती कविताएँ हैं. उम्मीद है पाठक इन्हें पढ़ते हुए एक अलग भावजगत तक जा पाएंगे. असुविधा पर स्वरांगी जी का स्वागत और उम्मीद कि आगे भी उनका सहयोग मिलता रहेगा. ग्रीन रूम 1  केवल तैयार होने   के लिए बना था   ग्रीन रूम कि   मंच पर जाते ही   परे रख सके अपने आप को। 2 रोशनी ही रोशनी   हर कोण से आती हुई ताकि ठीक से   देख सके

नीरू असीम की लम्बी कविता - उखड़ा हुआ आदमी

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नीरू असीम की कविताएँ असुविधा के पाठक पहले भी पढ़ चुके हैं. बहुत कम लिखने वाली और उससे भी कम शाया होने वालीं नीरू कनाडा में रहते हुए पंजाबी और हिंदी में लिखती हैं. भाषा और कहन की उनकी परिपक्वता मानीखेज कथ्य के साथ मिलकर एक गहरा प्रभाव रचती हैं. पहली बार कविता पोस्ट करते हुए मैंने लिखा था "उ नकी कविताओं के अर्थ उतना शब्दों के बाहर नहीं जितना शब्दों के भीतर गूंजते मंद्र संगीत में हैं."  ग्यारह खण्डों वाली इस लम्बी कविता में नीरू ने जिस उखड़े हुए आदमी का चित्र उकेरा है वह सिर्फ भौतिक विस्थापन का शिकार नहीं. वह सांस्कृतिक विस्थापन का भी शिकार है और मनोवैज्ञानिक विस्थापन का भी. जीवन के जटिलतम होते जाने और इसके साथ साथ दुनिया के कृत्रिमतम होते जाने की दोहरी चक्की से गुज़र मनुष्य इस नए देश काल में अपनी असल और बनती हुई पहचानों के बीच कहीं बस रहा दिखता हुआ गहरे उजड़ रहा है. कविता के सुधी पाठकों से इस लम्बी कविता को बहुत गौर से पढ़ने और इस पर खुल कर बात करने की उम्मीद है मुझे.   मुकेश शर्मा की पेंटिंग साभार  1. कैसा होता है उखड़ा हुआ आदमी परिभाषा...? यहां आदमी लैं