शरद कोकास की कविताएँ
शरद कोकास अ पनी विशिष्ट लम्बी कविताओं के लिए जाने जाते हैं, पुरातत्ववेत्ता जैसी कविता तो खैर अब इतिहास में दर्ज़ है. यहाँ उन्होंने मष्तिष्क का उत्खनन किया है. मनुष्य की निर्मिति के सबसे संश्लिष्ट और सबसे रहस्यमय हिस्से को परत दर परत किसी कुशल शल्य चिकित्सक की तरह खोलते और सहेजते शरद उन गहराइयों तक पहुँचने की भरपूर कोशिश करते हैं जहाँ से मनुष्य और समाज के अंतर्संबंधों की पड़ताल संभव होती है. ये कविताएँ कुछ दिनों पहले नया ज्ञानोदय में प्रकाशित हुईं थीं और अब आज उनके जन्मदिवस पर ब्लॉग जगत के पाठकों के लिए. André Desjardins की पेंटिंग गोल्डन माइंड गूगल से साभार मस्तिष्क के क्रियाकलाप दृष्टि एक बच्चे सा विस्मय था जब मनुष्य की आँखों में रात और दिन के साथ वह खेलता था आँख मिचौली समय की प्रयोग शाला में सब कुछ अपने आप घट रहा था देखने के लिये सिर्फ आँख का होना काफी था और प्रकाश छिपा था अज्ञान के काले पर्दे में पृथ्वी से अनेक प्रकाश वर्षों की दूरी के बावज़ूद सूर्य लगातार भेज रहा था अपनी शुभाशंसाएँ अब जबकि ऐसा घोषित किया जा रहा है कि ज्ञान पर पड़े सारे