और मैं तो कविता भी नहीं लिख सकता तुम जैसी...
(आज बहुत दिनों बाद अपनी एक कविता असुविधा पर) मेरा नया संकलन पुस्तक मेले में उपलब्ध होगा एक हारी हुई लड़ाई को उखड़ी साँसों तक लड़ने के बाद लौटता हूँ वहाँ जहाँ सांत्वना सिर्फ़ एक शब्द है लौटना मेरे समय का सबसे अभिशप्त शब्द है और सबसे क़ीमती भी इस बाज़ार में बस वही है बेमोल जो सामान्य है प्रेम की कोई क़ीमत नहीं और बलात्कार ऊँची क़ीमत में बेचा जाता है हत्या की ख़बर अखबार में नहीं शामिल आत्महत्या ब्रेकिंग न्यूज़ है अकेला आदमी अकेला रह जाता है उम्र भर और भीड़ में शामिल होते जाते हैं लोग मैं अकेला नहीं हूँ भीड़ में भी नहीं जाने जाने का उत्साह अभी अभी नाली में खँखार आया हूँ जो जानते हैं मुझे भूल ही जाएँगे एक दिन जो नहीं जानते उन्हें आये तो आये याद की एक चेहरा था रोज़ उसी वक़्त उसी जगह से उन्हीं कपड़ों में गुज़रता नहीं दीखता इन दिनों कौन जाने उनमें से किसी ने कभी सोचा हो मुस्कराने का और अपनी मशरूफियत में भूल गया हो मैं देश के सबसे मशहूर शहर में हूँ सबसे गुमनाम मैं एक बड़े से घर में रहता हूँ जो छोटा है सबसे बड़े घर की रसोई से मैं जो कविता लिखता हूँ वह ख़त्म हो जायेग