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मौसम निरंकुश तानाशाह है हमारे लिए - रुपाली सिन्हा

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जाड़े का मौसम हमारे वांग्मय में सुखमय मौसम की तरह आता है. जीवेत शरदः शतम्! सुविधासंपन्न लोगों के लिए आनंद का अवसर. उत्तर प्रदेश के सचिव कहते हैं कि 'ठण्ड से कोई नहीं मरता'. सच भी है कि जिन्हें सरकारें मनुष्य मानती हैं वह वर्ग ठण्ड से मर ही नहीं सकता. मरते वे हैं जिन्हें वह मनुष्य मानती ही नहीं. जिन्हें बोझ समझा जाता है. जो अवांछित हैं. आख़िर देश भर से विस्थापित हो महानगरों में दो रोटी कमाने आये लोग हों या मुजफ्फरपुर के राहत शिविरों में रह रहे लोग, इन्हें जनता की परिभाषा में कब शामिल करती हैं सरकारें. फिर उनके मरने की फ़िक्र भी क्यों हो किसी को?  लेकिन कवि की फ़िक्र की परिधि सरकारों की परिधियों सी तो नहीं हो सकती... रुपाली सिन्हा की यह कविता उन परिधियों का विस्तार करती है. उस दुनिया को देखने और उसका किस्सा कहने की कोशिश जो हर मुख्यधारा से विस्थापित है. और यह कहते हुए पाश से बेहतर कौन सा कन्धा हो सकता था सिर टिकाने को?  मुजफ्फरपुर के राहत शिविर से दक्कन हेराल्ड में छपा एक फोटो  मौसम की    मार ----------------------- पाश! मौसम की   मार सबसे खतरनाक होती है  

जीवन के सपनों और उजास भरी आँखों के कविः जितेन्द्र श्रीवास्तव

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यह दुनिया सिर्फ कहने में नहीं अपने वजूद में भी बहुत बड़ी है और जीवन चाहे जितना छोटा हो अरबों लोगों का वह कुछ हजार लोगों की मुट्ठी में समाने से इंकार कर अपनी जिद में आगे बढ़ जाता है यही वजूद और यही जिद हम जितेन्द्र श्रीवास्तव के पहले कविता संग्रह ’ इन दिनों हालचाल ’ से लेकर सद्य प्रकाशित पाँचवा संग्रह ’ कायांतरण ’ तक फैले उनके काव्य-संसार में भी देख सकते हैं। उनकी कविता ’ कुछ हजार लोगों ’ के जीवन तक सीमित नहीं है बल्कि ’ अरबों लोगो ’ के जीवन तक विस्तृत है। गूँगा-बहरा बोधू हलवाहा , गाँव-गाँव जाकर सेकुवा-हींग बेचने वाला शौका , सब्जी बेचने वाला रामवचन भगत , मानसरोवर यात्रियों का सामान ढोने वाले पोटर्स , लकड़ी-घास काटती-ढोती पहाड़ी स्त्री , ट्रेन के डिब्बांे में गाना गाने वाली , दुकान का नौकर , ठेला खींचने वाला जैसे रोज कमाकर खाने वाले श्रम से जुड़े पात्र , लुंगी , बेना , पीढ़ा , लालटेन , कुदाल , बसुला , खुरपी , मूँज की खटिया , ढेकुल , हाथ , सेई , जाँत , ढेंका , ओखल जैसी साधारण पर रोजमर्रा की आवश्यकता की वस्तुएं , बथुवा , भुट्टा , धतूरा , जौ , केराव , बाजरा , निमोने जैसे उपेक्षित