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देवयानी भारद्वाज की नई कविताएँ

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एक स्त्री का फोन टेप किया जाता है कि एक शक्तिशाली पुरुष उस पर एकाधिकार जमाना चाहता है, एक शक्रिशाली पुरुष अपनी अधीनस्थ से बदतमीजी करने को अपने अधिकार की तरह समझता है और इन सब के बीच देश के महानगरों से कस्बों-गाँवों तक सत्ता और पितृसत्ता के मद में चूर कितनी ही अपराध कथाएँ. इन सब के बीच मुझे देवयानी की ये कविताएँ एक सकर्मक प्रतिरोध की तरह लगती हैं जो किसी घटना विशेष पर फौरी प्रतिक्रिया की जगह पितृसत्तात्मक समाज के भीतर एक जबरदस्त उथल पुथल की इच्छा से जन्मी हैं. यह आकंठ डूबने के लिए आतुर इच्छा नदी के पुल पर खड़ी स्त्री है जिसने यहाँ तक पहुँचने की राह में आये अवरोधों से संघर्ष किया है और आगे आने वाले अवरोधों से भी सावधान है. उनकी कविताएँ आपने पहले भी असुविधा पर पढ़ीं हैं...इन्हें उसी क्रम में पढ़ा जाना चाहिए. अपने बेटे से   1 कल की सी बात है   जब पहली बार मेरी बांहों ने   जाना था उस नर्म अहसास को   जो तुम्‍हारे होने से बनता था   टुकुर टुकुर ताकती   वे बडी बडी आंखों   अब भी धंसी है मेरी स्‍म़ति में   सल्‍वाडोर डाली के चित्रों में   नहीं पिघलता समय   उस तर