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देवनीत की कवितायें

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पंजाबी के महत्वपूर्ण कवि  देवनीत की कविताओं का यह हिंदी अनुवाद जगजीत सिद्धू ने किया है। देवनीत का परिचय देते हुए जगजीत लिखते हैं -  देवनीत पंजाब के एक नामवर कवि है. वह  पंजाब के मानसा जिले में रहते है.कविता के प्रति उनका प्यार इस बात को देख कर ज़ाहिर हो जाता है की कैंसर जैसी भयानक बिमारी की आखरी स्टेज पर भी वो कविता लिख रहे है .उनकी कविता आम कविता नहीं है.उनकी हर कविता में उपरी सतह के शब्दों के नीचे बहुत गहरे अर्थ होते है.उनको थोड़े शब्दों में पूरी बात कहने में पूरी महारत हासिल है .देवनीत अपनी कविता में अमूर्त भाषा का प्रयोग बहुत करते है .उनकी कविता में पाठक को सूक्ष्म बाते खुद पकडनी पड़ती है .देवनीत की कविता की एक खूबसूरती यह है की वह साधारण दिखने वाली बातों की सहजता के भीतर छुपी हलचल को पकड़ता है .देवनीत की साधारण दिखती कविता के अर्थ बहुत महत्वपूर्ण होते हैं .उनकी अब तक चार किताबे प्रकाशित हो चुकी है.   कवि कुछ नहीं होता  कांट, कीट्स को मिलता है , कहता है , कवि पागल होते है , झूठे , कविओं को गोली मार देनी चाहिए कीट्स खिलखिलाकर हँसता है , कांट   , हँस नहीं पाता...

उमा शंकर चौधरी की कवितायें

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उमाशंकर चौधरी हिन्दी की युवा पीढ़ी के बहुचर्चित और बहुपुरस्कृत कवियों में से हैं. साथ ही,वह उन कवियों में से भी हैं जिन्होंने कविता और कहानी दोनों को बड़ी कुशलता से साधा है. उनकी कविताओं में जीवन की तमाम विडंबनाओं के दृश्य अपनी पूरी डिटेल्स के साथ आते हैं. कई बार वह दोनों विधाओं में आवाजाही करते से लगते हैं. ग्रामीण और कस्बाई जीवन के साथ राजनैतिक परिदृश्य पर उनका सीधा और तीक्ष्ण व्यंग्य उन्हें एक ज़रूरी कवि बनाता है. असुविधा पर आज उनकी कुछ नई-पुरानी कवितायें आग                             वह बच्ची, जिसकी उम्र दस- बारह वर्ष के करीब है और जिसने अपनी दो कोमल उंगलियों के बीच फंसा रखे हैं पत्थर के दो चिकने टुकड़े इस भीड़ भरी बस में निकालने की करती है कोशिश अपने गले से अनुराधा पौडवाल की आवाज पत्थर के इन दो चिकने टुकड़ों से निकालती है वह ढ़ेर सारी फिल्मी धुनें, भगवान के भजन और सफर के गीत इस भीड़ भरी बस में भी लोग सुनते हैं उसके छोटे गले से अनुराध पौडवाल की छोटी आवाज और देखते हैं बहुत ही तेज गति से चलने वाली उसकी दो उंगलियों के बीच पत्थरों का आपस में टकराना

उम्मीद का कोई विकल्प नहीं - कुमार अम्बुज

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वरिष्ठ कवि कुमार अम्बुज के ताजा संकलन ' अमीरी रेखा' पर लिखी मेरी यह समीक्षा कथन के ताज़ा अंक में छपी है .  उम्मीद का कोई विकल्प नहीं कही जा सकती हैं बातें हज़ारों यह समय फिर भी न झलकेगा पूरा झाड-झंखाड बहुत एक आदमी से न बुहारा जाएगा इतना कूड़ा क्या बहारूं क्या कहूँ, क्या न कहूँ? अच्छा है जितना झाड सकूं, झाडूं जितना कह सकूँ, कहूँ कम से कम चुप तो न रहूँ.                 (कोशिश) कुमार अम्बुज के ताजा संकलन ‘ अमीरी रेखा ’ की यह कविता उनके काव्य व्यक्तित्व और उनके काव्य-अभीष्ठ, दोनों का परिचय देती है. उनके यहाँ न नियंता होने का अहंकार है, न किंकर्तव्यविमूढता या फिर व्यर्थताबोध से उपजी निराशा. उनका कवि-कर्म बकौल ब्रेख्त ‘ बुरे समय में बुरे समय की कविताएँ ’ लिखने की एक मुसलसल जद्दोजेहद है. कला की जो विधा उन्होंने चुनी है उसके ‘ कला ’ होने का जितना एहसास उन्हें है, उतना ही इसकी सामाजिक भूमिका का भी. इस संकलन के पहले पन्ने पर उन्होंने ऋत्विक घटक की यह पंक्ति उद्धृत की है –“ दुनिया में अभी तक कोई वर्गविहीन कला नहीं है क्योंकि वर्ग विह

आदित्य प्रकाश की पहली कहानी

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असुविधा पर मेरी कोशिश हमेशा से नए से नए रचनाकार को स्पेस देने की है. मुझे संतोष है कि आज प्रिंट तथा ब्लॉग , दोनों क्षेत्रों में अपनी जगह बना चुके तमाम रचनाकार सबसे पहले या अपने बिलकुल आरम्भ के समय में असुविधा पर छपे थे. आज इसी क्रम में आदित्य प्रकाश की यह पहली कहानी पेश करते हुए एक गहरा आत्मसंतोष हो रहा है , यह इसलिए और कि मैंने पिछले दो सालों में आदित्य के भीतर के मनुष्य और रचनाकार , दोनों को बनते हुए और बदलते हुए देखा है और इस कहानी की रचना-प्रक्रिया में कहीं न कहीं शामिल भी रहा हूँ. काल सेंटर में काम करने वाले एक संवेदनशील युवा की कशमकश को यह कहानी बहुत  सहजता से दर्ज करते हुए नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था के इन नए प्रेक्षागृहों के भीतर पनप रही उस नयी संस्कृति के उस भयावह चेहरे को बेपर्द करती है, जिसे सतरंगे रैपरों में लपेट कर पेश किया जाता है. इस कहानी में जो चीज मुझे सबसे अधिक अपील करती हा वह है किस्सागोई का शुद्ध एशियाई तरीका. इसपर फिलहाल किसी बड़े लेखक का प्रभाव दर्ज नहीं किया जा सकता. साथ ही आदित्य ने जो विषय  उठाया है वह उसके आसपास का है और हिन्दी में अब तक अछूता. असल में