हरिओम राजोरिया की कविताएँ
हरिओम राजोरिया नब्बे के दशक के एक बेहद महत्वपूर्ण कवि हैं. अब तक उनकी एक कविता पुस्तिका "यह एक सच है (1993)' और दो कविता संकलन "हंसीघर (मेधा प्रकाशन, 1998)" और "खाली कोना (ज्ञानपीठ, 2007)" प्रकाशित हुए हैं. हिन्दी कविता परिदृश्य में जिस 'लोक' की बात अक्सर होती है , हरिओम की कविताएँ उसका अतिक्रमण भी करती हैं और उसका एक ऐसा अदेखा दृश्य भी प्रस्तुत करती हैं , जो लोक के नाम पर निर्मित एक खास तरह की छवि को ध्वस्त करता है. उनके यहाँ कस्बाई तथा ग्रामीण संस्कृति अपने पूरे रंग में सामने आती है. यह कोई मोनोलिथ 'लोक' नहीं है. इसके कई संस्तर हैं...बेहद संश्लिष्ट और बहुरंगी ...जिनके रस्ते चलकर वह हर बार उस मनुष्य तक की मुश्किल यात्रा करते हैं जो उनकी कविता की सबसे बड़ी चिंता का केन्द्र भी है और उनकी रचना-प्रक्रिया का अविभाज्य हिस्सा भी. उनकी सक्रियता और हस्तक्षेप की निरंतर कोशिश ने उन्हें अब तक "विशिष्ट" होने से बचाए रखा है , जिसे मैं अलग से रेखांकित किये जाने योग्य मानता हूँ. यहाँ उनकी कुछ छोटी और एक लंबी कविता...उनकी कुछ और