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विपिन चौधरी की कविताएँ

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विपिन चौधरी हिन्दी की उन युवा कवियत्रियों में से हैं जिन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली है. 'दस्यु सुंदरी' जैसी कविता समकालीन स्त्री विषयक कविताओं की भीड़ में अलग से पहचानी जा सकती है. विपिन न केवल स्त्री विषयों का अतिक्रमण कर समकालीन समय की तमाम विडंबनाओं को प्रश्नांकित करती हैं. असुविधा पर उन्हें पहली बार प्रकाशित करते हुए हम उनका एहतराम करते हैं. 1 दस्यु सुंदरी किसी रोज़  हम एक दस्यु सुन्दरी से मिलने गए थे सदी यही थी तारीख और साल दिमाग की तंत्रिकाओ में गुम हो गए हैं उस रोज़ दस्यु सुंदरी से बाकायदा हमने गर्मजोशी से हाथ भी मिलाया मुलाकात से पहले जहन मे फिअरलेस नाडिया सी चंचल युवती का अक्स हमारी आखों के दायरे में था सुंदरी से मिलने पर लगा पुराने फ्रेम मे तस्वीर बदल दी गयी है वीरान, बेरौनक, अथाह ग़मगीनी मे लिपटी एक बारीक काया फिर भी हमें अपने आस पास बीहड जंगल का भान होने लगा हम डरते नहीं थे पर मामला दस्यु सुन्दरी का था एकबारगी यह भी लगा अचानक इस सुन्दरी ने हम पर हमला कर दिया तो हम निहत्थों की लाश भी अपने ठिकाने  नहीं पहुंचेगी पर  उस खामखयाली की

कितने तो रंग हैं - देवयानी भारद्वाज की कविताएँ

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देवयानी भारद्वाज से मुलाक़ात सबसे पहले 'कविता समय' पुस्तिका के प्रकाशन के दौरान हुई थी. फिर जयपुर में रु ब रु मिला और उनकी कविताएँ सुनी. उन्हें पढ़ना एक ऐसे अलमस्त कवि को पढ़ना लगा जिसके लिए प्रेम रोजमर्रा के जीवन से बाहर की कोई चीज़ नहीं है, जिसके लिए स्त्री की आजादी का सवाल कोई अकादमिक सवाल नहीं है, जिसके लिए अपनी उस आजादी की तलाश एक मुसलसल जद्दोजेहद ही नहीं बल्कि जिंदगी जीने का सलीका भी है.   एक दिन मैं कर लूँगी बन्द घर के दरवाज़े   माहिर पतंग बाज हो तुम   बखूबी   जानते हो   काटना दूसरों की   पतंग   लम्बी ढील में   लट्टू को अपने इशारों पर नचाना आता है तुम्हें   कायल हैं लोग तुम्हारे इस हुनर के   तुम्हारे टेढे सवाल कर देते हैं लाजवाब   रंगों की अराजकता कोई तुमसे सीखे   एक दिन   लोग   खोज ही लेंगे कि    ढील में पेच लडाने वालों की पतंगों को   कब् और कैसे मारना हैं खेन्च   लट्टू अन्ततः लट्टू ही है   यदि तुम समझ बैठे हो कि   ऐसे ही नचा लोगे धरती को भी अपने इशारों पर   सिर्फ एक डोर् मे उलझा कर   तो ज़रा सावधान रहना