विपिन चौधरी की कविताएँ
विपिन चौधरी हिन्दी की उन युवा कवियत्रियों में से हैं जिन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली है. 'दस्यु सुंदरी' जैसी कविता समकालीन स्त्री विषयक कविताओं की भीड़ में अलग से पहचानी जा सकती है. विपिन न केवल स्त्री विषयों का अतिक्रमण कर समकालीन समय की तमाम विडंबनाओं को प्रश्नांकित करती हैं. असुविधा पर उन्हें पहली बार प्रकाशित करते हुए हम उनका एहतराम करते हैं. 1 दस्यु सुंदरी किसी रोज़ हम एक दस्यु सुन्दरी से मिलने गए थे सदी यही थी तारीख और साल दिमाग की तंत्रिकाओ में गुम हो गए हैं उस रोज़ दस्यु सुंदरी से बाकायदा हमने गर्मजोशी से हाथ भी मिलाया मुलाकात से पहले जहन मे फिअरलेस नाडिया सी चंचल युवती का अक्स हमारी आखों के दायरे में था सुंदरी से मिलने पर लगा पुराने फ्रेम मे तस्वीर बदल दी गयी है वीरान, बेरौनक, अथाह ग़मगीनी मे लिपटी एक बारीक काया फिर भी हमें अपने आस पास बीहड जंगल का भान होने लगा हम डरते नहीं थे पर मामला दस्यु सुन्दरी का था एकबारगी यह भी लगा अचानक इस सुन्दरी ने हम पर हमला कर दिया तो हम निहत्थों की लाश भी अपने ठिकाने नहीं पहुंचेगी पर उस खामखयाली की