फ़िलहाल जम रहा है मेरा समय
पेंटिंग यहाँ से जमशेदपुर में रहने वाले युवा कवि प्रशांत श्रीवास्तव की कविताएँ आप पहले भी असुविधा पर पढ़ चुके हैं. प्रशांत उन कवियों में से हैं जिनकी कविताएँ अभी प्रिंट में उतनी नहीं आई हैं लेकिन ब्लॉग जगत के पाठक उनसे बखूबी परिचित हैं. प्रशांत की कविताएँ एक ऐसे युवा की कविताएँ हैं जो दुनिया को अपनी निगाह से देखते हुए बड़ी आसानी से अपने चारों ओर उपस्थित दृश्यों को कविता में दर्ज करता चलता है. यहाँ किसी तरह की जल्दबाजी, चमत्कृत कर देने का अतिरिक्त प्रयास या फिर बडबोलापन नहीं दिखाई देता. उनकी कविता की दुनिया बेहद मामूली चीजों के बहाने बड़े सवालों तक पहुँचने से बनती है. आप देखेंगे कि वह चादरों पर लिखते हुए उस बहुश्रुत मुहाविरे से टकराने के बहाने अपने समय की विडंबनाओं से टकराते हुए कितनी आसानी से लिख जाते हैं कि 'चादरें सिकुड़ने का हुनर जानती हैं'. प्रशांत का यह हुनर एक प्रतिभाशाली तथा संभावनाशील कवि के आगमन की सूचना देता है. चादरें चादरें सिकुड़ने का हुनर जानती हैं वे हमारी महत्वकांक्षाओं के अनुपात में हो जाती हैं छोटी कुछ चादरें आजीवन छोटी ही रहती हैं मगर तब उ