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तुम्हारी दुनिया में इस तरह

सिंदूर बनकर तुम्हारे सिर पर सवार नहीं होना चाहता हूं न बिछुआ बन कर डस लेना चाहता हूं तुम्हारे कदमों की उड़ान चूड़ियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता तुम्हारी कलाईयों की लय न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं तुम्हारी उन्नत ग्रीवा किसी वचन की बर्फ़ में नही सोखना चाहता तुम्हारी देह का ताप बस आंखो से बीजना चाहता हूं विश्वास और दाख़िल हो जाना चाहता हूं ख़ामोशी से तुम्हारी दुनिया में जैसे आंखों में दाख़िल हो जाती है नींद जैसे नींद में दाख़िल हो जाते हैं स्वप्न जैसे स्वप्न में दाख़िल हो जाती है बेचैनी जैसे बेचैनी में दाख़िल हो जाती हैं उम्मीदें

अच्छे आदमी

अच्छे आदमी अंधेरा होते ही बंद कर लेते हैं दरवाज़ा अच्छे आदमी करते हैं अच्छी-अच्छी बातें नाप जोख कर लिखते हैं कवितायें सोच समझ कर करते हैं हर काम यहां तक की प्यार भी। अच्छे आदमी के कपड़ों पर नहीं होता कोई दाग़ घर होता है सुन्दर सा पत्नी सुशील-बेटा मेधावी-बेटी-गृहकार्यदक्ष ! अच्छे आदमी नहीं करते कोई बुरी बात देखते हैं पारिवारिक धारावाहिक और बदल देते हैं चैनल चुंबन दृश्य से ठीक पहले। अच्छे आदमी होते हैं समय के इतने पाबंद कि दफ़्तर तो दफ़्तर संडास आने जाने से भी मिलाई जा सकती हैं घड़ियां। अच्छे आदमी वैसे तो होते हैं स्वस्थ और प्रसन्नचित्त लेकिन कभी जब आ ही जाता है गुस्सा पांच बार दोहराते हैं गायत्री मंत्र और पानी पीकर सो जाते हैं। अच्छे आदमी होते हैं बहुत अच्छे दोस्त अच्छे वक़्त में अच्छे आदमी सोचते हैं हमेशा अच्छी बातें यहां तक कि दुनिया बदल देने के बारे में भी लेकिन सिर्फ़ सोचते हैं अच्छे आदमी होते हैं कुछ इस क़दर अच्छे कि कई बार शक़ होता है उनके पूरे आदमी होने पर

सोती हुई बिटिया को देखकर

चित्र
(मित्रों के आदेश पर लगा दी बिटिया की तस्वीर। नाम है वेरा और संगीत की दीवानी) अभी-अभी हुलसकर सोई हैं इन साँसों में स्वरलहरियां अभी-अभी इन होठों में खिली है एक ताज़ा कविता अभी-अभी उगा है इन आंखों में नीला चाँद अभी-अभी मिला है मेरी उम्मीदों को एक मज़बूत दरख़्त